देश में नाग पचंमी सावन मास शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन सापों की पूजा होती है। पूजा के दौरान सांपों को दुध अर्पित किया जाता है। महिलाएं अपने परिवार के सदस्यों के साथ सापों के राजा नाग की पूजा करती हैं। हमारे देश में सापों का विशेष महत्व है, भगवन शिव के गले में भी सर्प सदैव लिपटा रहता है। इस दिन लोग परिवार कल्याण के लिए नाग देवता की पूजा करते हैं। सनातन धर्म में इसे अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
आध्यात्मिक लाभ
नाग पंचमी के दिन नाग पूजा करने की परंपरा है । प्राचीन काल से ही हिंदू धर्म में नाग पूजा का उल्लेख पाया जाता है, यह भारत के विभिन्न क्षेत्रों में की जाती है। नागपंचमी संपूर्ण भारत में मनाया जाने वाला त्यौहार है । इस वर्ष अंग्रेजी माह के अनुसार 2 अगस्त को यह त्यौहार मनाया जाएगा।
इतिहास
पांच युगों से पूर्व सत्येश्वरी नामक एक कनिष्ठ देवी थी । उनका सत्येश्वर नाम का भाई था । सत्येश्वर की मृत्यु नागपंचमी से एक दिन पूर्व हो गई थी । सत्येश्वरी को उसका भाई नाग के रूप में दिखाई दिया । तब उसने उस नाग रूप को अपना भाई माना । उस समय नाग देवता ने वचन दिया कि, जो बहन मेरी पूजा भाई के रूप में करेगी, मैं उसकी रक्षा करूंगा । इसलिए प्रत्येक स्त्री उस दिन नाग की पूजा कर नागपंचमी मनाती है।
नाग पंचमी में किए जाने वाले कृत्य का आध्यात्मिक लाभ
जो स्त्री नाग की आकृतियों का भावपूर्ण पूजन करती है, उसे शक्ति तत्व प्राप्त होता है। इस विधि में स्त्रियां नागों का पूजन ‘भाई’ के रूप में करती हैं, जिससे भाई की आयु बढती है । नागपंचमी के दिन नाग की पूजा करना अर्थात नाग देवता को प्रसन्न करना । नागपंचमी के दिन नाग की पूजा करना अर्थात सगुण रूप में शिव की पूजा करने के समान है । इसलिए इस दिन वातावरण में आई हुई शिव तरंगें आकर्षित होती हैं तथा वे जीव के लिए 364 दिन उपयुक्त सिद्ध होती हैं।
नए वस्त्र और अलंकार परिधान करने का कारण
भाई के लिए सत्येश्वरी का शोक देखकर नागदेव प्रसन्न हो गए । उसका शोक दूर करने और उसे आनंदी करने के लिए नागदेव ने उसे नए वस्त्र परिधान करने हेतु दिए तथा विभिन्न अलंकार देकर उसे सजाया । उससे सत्येश्वरी संतुष्ट हो गई । इसलिए नागपंचमी के दिन स्त्रियां नए वस्त्र और अलंकार परिधान करती हैं।
मेंहदी लगाने का महत्व
नागराज, सत्येश्वर के रूप में सत्येश्वरी के सामने प्रकट हुए । ‘वह चले जाएंगे’, ऐसा मानकर सत्येश्वरी ने उनसे अर्थात नागराज से अपने हाथों पर वचन लिया । वह वचन देते समय सत्येश्वरी के हाथों पर वचन चिन्ह बन गया । उस वचन के प्रतीक स्वरूप नागपंचमी से एक दिन पूर्व प्रत्येक स्त्री अपने हाथों पर मेहंदी लगाती है।
नाग पंचमी की परंपराएं
नागपंचमी के दिन कुछ अन्य बातें भी परंपरागत रूप से चली आई हैं । उनमें से एक है- झूला झूलना। नागपंचमी के दिन स्त्रियों के झूला झूलने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है । झूला झूलते समय आकाश की ओर ऊपर जाते झूले के साथ, अपने भाई की उन्नति हो, एवं नीचे आते झूले के साथ भाई के जीवन में आने वाले दुख दूर हों, ऐसा भाव रखा जाता है । इस परंपरा का पालन आज भी देहातों में होता है । इस दिन स्त्रियां अपने भाई की सुख-समृद्धि तथा उसकी उन्नति के लिए उपवास रख नाग देवता से प्रार्थना करती हैं । नागपंचमी के दिन जो बहन, भाई की उन्नति हेतु ईश्वर से उत्कंठा पूर्वक एवं भावपूर्ण प्रार्थना करती है, उस बहन की पुकार ईश्वर के चरणों में पहुंचती है । अतः प्रत्येक स्त्री को इस दिन ईश्वरीय राज्य की स्थापना हेतु प्रत्येक युवक को सद्बुद्धि, शक्ति एवं सामर्थ्य प्राप्त हो, ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए।
अवतार कार्य से नाग का संबंध
पृथ्वी पर जब अधर्म बढता है, तब दुर्जनों द्वारा अत्याधिक कष्ट दिए जाते हैं । इस कारण साधकों के लिए साधना करना कठिन हो जाता है । तब दुर्जनों का विनाश करने हेतु ईश्वर प्रत्यक्ष रूप धारण कर जन्म लेते हैं । ईश्वर के इसी प्रत्यक्ष रूप को अवतार कहते हैं । ईश्वर का यह अवतार रूप दुर्जनों का विनाश कर धर्म संस्थापना करते हैं । यह धर्म संस्थापना का कार्य ही अवतार कार्य है । जब ईश्वर अवतार लेते हैं, तब उनके साथ अन्य देवता भी अवतार लेते हैं एवं ईश्वर के धर्म संस्थापना के कार्य में सहायता करते हैं । उस समय नाग देवता भी उनके साथ होते हैं । जैसे, त्रेतायुग में भगवान श्रीविष्णु ने राम अवतार धारण किया तब शेषनाग लक्ष्मण के रूप में अवतरित हुए । द्वापर युग में भगवान श्रीविष्णु ने श्रीकृष्ण का अवतार लिया । उस समय शेष बलराम बने।