December 15, 2024

आवाज: हिन्दुओं के सबसे पवित्र नगरों में से एक वाराणसी इन दिनो सुर्खियों में है। कारण है काशी विश्वनाथ मंदिर के समीप ज्ञानवापी मस्जिद। दरसल वर्तमान मस्जिद की दीवार हिंदू वास्तुकला से मिलती जुलती है।

इतिहासकारों का मानना है की यहां एक कुंआ और मंदिर होता था जिसे मुस्लिम शासकों ने ध्वस्त करवाकर मस्जिद का निर्माण कराया। इस कारन से हिंदू पक्षकारों ने इस मामले को कोर्ट तक ले गए और कहा यहां पवित्र मंदिर हुआ करता था जिसे इस्लामिक आक्रांताओं द्वारा तोड़कर मस्जिद बनवाया गया। फिल्हाल यह मामला कोर्ट में है कोर्ट ने आदेश दिया है की मस्जिद के पुरे परिसर का वीडियोग्राफी और सर्वे किया जाए। इससे जुड़े पक्षकारों ने दावा किया है की मस्जिद के दीवारों और तहखानों में मंदिर से जुड़े प्रमाण अभी भी मौजुद है।

दरसल हिंदी शब्द ज्ञानवापी को संधि विच्छेद करने पर दो शब्द ज्ञान और वापी अर्थात ज्ञान का कुआं बनता है। परिसर के निकट हीं ज्ञानवापी कूप आज भी मौजूद है।

कहते हैं की सन 1400-1500 में भी काशी के भव्य मंदिर को तोड़ा गया था। इसी काल में 1585 में भयंकर अकाल पड़ा था लोग अनाज और दूसरे जरूरत की चीजों के लिए तरस गए थे ऐसे में जगद्गुरु नारायण भट्ट ने भगवन शिव से बारिश के लिए प्रार्थना की जिसके 24 घंटे के भीतर बारिश हुई। फिर राजा टोडरमल और जगद्गुरु ने भगवान शिव के मंदिर का जीर्णोद्धार की योजना बनाई। योजना के अनुसार राजा टोडरमल ने धन की व्यवस्था कराई और नारायण भट्ट के देखरेख में वर्ष 1585 में शिव मंदिर के जीर्णोद्धार का काम शुरू हुआ।

कहा जाता है की 1669 में औरंगजेब के आदेश पर हिंदू धार्मिक स्थल, पाठशालाएं और अन्य पवित्र जगहों को तोड़ दिया गया जिसमे ज्ञानवापी का मंदिर भी शामिल था। लगभग 125 साल बाद साल 1735 में इंदौर की महारानी देवी अहिल्याबाई ने वर्तमान मंदिर का निर्माण कराया।

1991 में एक याचिका दायर किया गया था जिसमे एक पक्षकार ने ज्ञानवापी मस्जिद को शिव मंदिर होने का दावा किया जिसके बाद वाराणसी की एक निचली अदालत ने पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को ज्ञानवापी परिसर के सर्वेक्षण का आदेश दिया था।
इसी साल संसद मे उपासना स्थल क़ानून बना। 18 सितंबर 1991 में बने इस क़ानून के मुताबिक 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता।
इस कानून को आधार बनाकर मुस्लिम पक्षकारों ने उपासना स्थल क़ानून, 1991 का हवाला देकर इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साल 1993 में यथास्थिति क़ायम रखने के लिए स्टे आर्डर दिया। स्टे ऑर्डर की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद साल 2019 में वाराणसी कोर्ट में फिर से इस मामले में सुनवाई शुरू हुई और इसी सुनवाई के बाद मस्जिद परिसर के वीडियोग्राफी और पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का आदेश पारित हुआ।

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