नवरात्री के अष्टमी तिथि अर्थात दुर्गाष्टमी के दिन देवी के अनेक अनुष्ठान करने का महत्त्व है। इसलिए इसे महाष्टमी’ भी कहते हैं। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को महाष्टमी को मां महागौरी की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। गौर वर्ण वाली मां महागौरी अपने भक्तों के दुखों को दूर करती हैं। अष्टमी एवं नवमी की तिथियों के संधिकाल में अर्थात अष्टमी तिथि पूर्ण होकर नवमी तिथि के आरंभ होने के बीच के काल में देवी शक्ति धारण करती हैं। इसीलिए इस समय श्री दुर्गाजी के ‘चामुंडा’ रूप का विशेष पूजन करते हैं, जिसेसंधिपूजन’ कहते हैं।
माँ महागौरी की पूजा-
नवरात्रि के अष्टमी तिथि को मां दुर्गा के आठवें स्वरूप मां महागौरी की पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि महागौरी की पूजा करने से शारीरिक व मानसिक समस्या दूर होता है। माता महागौरी की पूजा से यश, धन, वैभव मिलता है।
माँ महागौरी का स्वरुप-
माँ महागौरी के इस स्वरुप में त्रिशूल और डमरू धारण किये रहती हैं। माँ के दो भुजाएं अभय और वरद मुद्रा में रहती हैं। माँ को मानसिक और सांसारिक ताप का हरण करने वाली देवी माना गया है। मनवांछित फल पाने हेतु भक्त मां महागौरी के इस स्वरूप की पूजा पुरे विधि-विधान से करते हैं।
माँ महागौरी पूजा मंत्र-
श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥