December 15, 2024

New Delhi: भगवान भोलेनाथ को श्रावण मास सबसे प्रिय है। श्रावण या सावन महीने में भगवान शिव की उपासना करने से जीवन में आ रही कठिनाईयां दूर हो जाती है और भक्तों को सुख एवं समृद्धि का फल मिलता है। इस वर्ष का सावन का महीना कुल ५९ दिनों का हो रहा है, ऐसा दुर्लभ संयोग लगभग १९ सालों के बाद बन रहा है।

ऐसा संयोग इसलिए बन रहा है की इस वर्ष अधिक मास या पुरषोत्तम मास भी श्रावण मास के साथ युक्त हो रहा है।

इस सावन के पवित्र महीने में भगवान भोले नाथ के भक्त कांवड़ यात्रा कर पवित्र शिवलिंग पर जल अर्पित करते हैं। यह पवित्र कांवर यात्रा में देश के लगभग सभी हिस्सों में होता है।

कांवड़ यात्री सावन मास की चतुर्दशी तिथि के दिन अर्थात श्रावण शिवरात्रि के दिन भगवान का जलाभिषेक करते हैं। मान्यता है कि इस विशेष दिन पर भगवान शिव का अभिषेक करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।

ऐसा माना जाता है की भगवान् भोलेनाथ के प्रिय भक्त परशुराम जी ने सबसे पहले कांवड़ यात्रा को शुरू किया था और वह महीना था सावन का। एक अन्य मान्यता के अनुसार भक्त श्रवण कुमार ने अपने अंधे माता-पिता को कांवड़ में बिठा कर हरिद्वार से पवित्र गंगा जल लेने निकले थे।

शास्त्रों के अनुसार सावन के हीं महीने में समुद्र मंथन हुआ था, जिसमे निकले विष को भगवान भोलेनाथ ने पान किया था। तब से इस मास में शिवभक्त भगवान शिव की भक्ति में समर्पित करते आ रहे हैं।

कांवड़ यात्रा के लिए विशेष नियम है जिसे भक्त कांवड़ यात्रा के दौरान पालन करते हुए हीं जलाभिषेक करते हैं।

कांवड़ यात्रा के कई प्रकार हैं जिसे श्रद्धालु अपने-अपने तरीके से पूरा करते हैं-

सबसे प्रचलित है सामान्य कांवड़ यात्रा जिसमें श्रद्धालु जल लेकर सामान्य चाल से चलते हुए भगवान् शिव मंदिर की और चलते रहते हैं। इस क्रम में श्रद्धालु जहां चाहे वहां विश्राम कर सकते हैं भोजन कर सकते हैं। विश्राम-भोजन करने के बाद दोबारा कांवड़िए अपनी यात्रा शुरू करते हैं. इस दौरान श्रद्धालु नियमानुसार कांवड़ को स्टैंड पर रखते हैं ताकि कांवड़ जमीन से न छुए.

दूसरा होता है डाक कांवड़ यात्रा, इसमें कांवड़िये अपनी यात्रा को 24 घंटे में पूरा करते है. इस यात्रा में कांवड़ लाने का संकल्प लेकर श्रद्धालु एक टोली बनाते हैं जिसमे दल के सदस्य बारी बारी से कांवड़ को एक दूसरे को हस्तांतरित करते हुए गंतव्य भगवान् शिव मंदिर तक पहुँचते है।

तीसरा होता है दंडवत कांवड़ यात्रा, इस यात्रा में कांवड़िए अपनी मनोकामना पूरा करने के लिए दंडवत करते हुए अपनी यात्रा पूरा करते हैं। इस दौरान भगवान् भोलेनाथ के भक्त दंडवत करते हुए शिवालय तक पहुंचते हैं और पवित्र जल शिवलिंग पर चढ़ाते हैं.

एक होता है खड़ी कांवड़ यात्रा, इस कांवड़ यात्रा को सबसे कठिन माना जाता है. इस कांवड़ की खास बात ये होती है कि शिव भक्त गंगा जल उठाने से लेकर जलाभिषेक तक कांवड़ को अपने कंधे पर रखते हैं. इस यात्रा में कांवड़ को आमतौर शिव भक्त जोड़े में ही लाते हैं.

एक होता झांकी कांवड़, इस तरह के यात्रा में भगवान् शिव भक्त झांकी लगाकर कांवड़ यात्रा करते हैं. कई कांवड़िए के इस समूह द्वारा शिवलिंग वाला झांकी तैयार करते और यात्रा करते हैं।

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